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तं प्र॒त्नथा॑ पू॒र्वथा॑ वि॒श्वथे॒मथा॑ ज्ये॒ष्ठता॑तिं बर्हि॒षदं॑ स्व॒र्विद॑म्। प्र॒ती॒ची॒नं वृ॒जनं॑ दोहसे गि॒राशुं जय॑न्त॒मनु॒ यासु॒ वर्ध॑से ॥१॥

English Transliteration

tam pratnathā pūrvathā viśvathemathā jyeṣṭhatātim barhiṣadaṁ svarvidam | pratīcīnaṁ vṛjanaṁ dohase girāśuṁ jayantam anu yāsu vardhase ||

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Pad Path

तम्। प्र॒त्नऽथा॑। पू॒र्वऽथा॑। वि॒श्वऽथा॑। इ॒मऽथा॑ ज्ये॒ष्ठऽता॑तिम्। ब॒र्हि॒ऽसद॑म्। स्वः॒ऽविद॑म्। प्र॒ती॒ची॒नम्। वृ॒जन॑म्। दो॒ह॒से॒। गि॒रा। आ॒शुम्। जय॑न्तम्। अनु॑। यासु॑। वर्ध॑से ॥१॥

Rigveda » Mandal:5» Sukta:44» Mantra:1 | Ashtak:4» Adhyay:2» Varga:23» Mantra:1 | Mandal:5» Anuvak:3» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब पन्द्रह ऋचावाले चवालीसवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में सूर्यरूपता से राजगुणों को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे राजन् ! जो आप (गिरा) वाणी से (प्रत्नथा) पुराने के सदृश (पूर्वथा) पूर्व के सदृश (विश्वथा) सम्पूर्ण संसार के सदृश (इमथा) इसके सदृश (ज्येष्ठतातिम्) जेठे ही को (बर्हिषदम्) उत्तम आसन वा अन्तरिक्ष में स्थित होनेवाले (स्वर्विदम्) सुख को जानते जिससे उस (प्रतीचीनम्) हम लोगों के सम्मुख प्राप्त होते हुए (वृजनम्) बल को तथा (आशुम्) शीघ्रकारी संग्राम को (जयन्तम्) जीतते हुए को (दोहसे) पूर्ण करते हो (तम्) उन आपको और (यासु) जिनमें (अनु, वर्धसे) वृद्धि को प्राप्त होते हो, उन सेनाओं और उन प्रजाओं की हम लोग निरन्तर वृद्धि करें ॥१॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जो प्राचीन रीति से प्राचीन उत्तम राजाओं के तुल्य पिता के सदृश राज्य का उत्तम प्रकार पालन करके पूर्ण बलयुक्त सेना को कर शीघ्र विजय को प्राप्त हुई प्रजाओं को सुख के अनुकूल वर्त्तावें, उन्हीं को उत्तम अधिकार में नियुक्त करिये, जिससे राजा और प्रजा का निरन्तर सुख बढ़े ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ सूर्यरूपतया राजगुणानाह ॥

Anvay:

हे राजन् ! यस्त्वं गिरा प्रत्नथा पूर्वथा विश्वथेमथा ज्येष्ठतातिं बर्हिषदं स्वर्विदं प्रतीचीनं वृजनमाशुं जयन्तं दोहसे तं त्वां यास्वनु वर्धसे ताः सेना प्रजाश्च वयं सततं वर्धयेम ॥१॥

Word-Meaning: - (तम्) (प्रत्नथा) प्रत्नमिव (पूर्वथा) पूर्वमिव (विश्वथा) विश्वमिव (इमथा) इममिव (ज्येष्ठतातिम्) ज्येष्ठमेव (बर्हिषदम्) बर्हिष्युत्तमासनेऽन्तरिक्षे वा सीदन्तम् (स्वर्विदम्) स्वः सुखं विदन्ति येन तम् (प्रतीचीनम्) अस्मान् प्रत्यभिमुखं प्राप्नुवन्तम् (वृजनम्) बलम् (दोहसे) पिपरसि (गिरा) वाण्या (आशुम्) शीघ्रकारिणं सङ्ग्रामम् (जयन्तम्) विजयमानम् (अनु) (यासु) (वर्धसे) ॥१॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः । हे मनुष्या ! ये सनातनरीत्या पूर्वोत्तमराजवत्पितृवद् राष्ट्रं सम्पाल्य पूर्णबलां सेनां कृत्वा सद्योविजयमानाः प्रजाः सुखानुकूला वर्त्तयन्तु तानेवोत्तमाऽधिकारे नियोजयत यतो राजप्रजानां सततं सुखं वर्धेत ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात सूर्य, मेघ व विद्वानांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वसूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो! जे प्राचीन उत्तम राजांप्रमाणे, पित्याप्रमाणे राज्याचे पालन चांगल्या प्रकारे करून तात्काळ विजय प्राप्त करणाऱ्या बलवान सेनेद्वारे प्रजेच्या सुखासाठी झटतात त्यांनाच उत्तम पदावर नियुक्त करावे. ज्यामुळे राजा व प्रजेचे सुख वाढेल. ॥ १ ॥